कबीर दास का जन्म
कबीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था, इसके बारे में इतिहासकारों के बीच में द्वन्द हैं, कबीर के जन्म स्थान के बारे में तीन मत सामने आते हैं मगहर, काशी और आजमगढ़ का बेलहरा गाँव।अधिकतर इतिहासकार इस बारे में यकीन रखते हैं कि कबीर का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था, जो यह बात कबीर के दोहे की इस पंक्ति से प्रतीत होती हैं।
काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये
कबीर दास भारत के महान कवि और समाज सुधारक थे। कबीर दास के नाम का अर्थ महानता से है। वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे। जब भी भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो कबीर दास जी का नाम का जिक्र सबसे पहले होता है क्योंकि कबीर दास जी ने अपने दोहों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को दर्शाया है|
कबीर दास की भाषा
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी हैं। इनकी भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित हैं। राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है
कबीर दास की कृतियां
धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह ” बीजक ” नाम के ग्रंथ मे किया जिसके तीन मुख्य भाग हैं : साखी , सबद (पद ), रमैनी
- साखी: संस्कृत ‘ साक्षी , शब्द का विकृत रूप है और धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अधिकांश साखियां दोहों में लिखी गयी हैं पर उसमें सोरठे का भी प्रयोग मिलता है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण अधिकतर साखी में हुआ है।
- सबद गेय पद है जिसमें पूरी तरह संगीतात्मकता विद्यमान है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर भावावेश की प्रधानता है ; क्योंकि इनमें कबीर के प्रेम और अंतरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।
- रमैनी चौपाई छंद में लिखी गयी है इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है।
कबीर दास की रचनाये
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अगाध मंगल,
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अठपहरा
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अनुराग सागर
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अमर मूल
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अर्जनाम कबीर का
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अलिफ़ नामा
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आरती कबीर कृत
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उग्र गीता
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उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
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कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
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कबीर की वाणी
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कबीर अष्टक
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अक्षर खंड की रमैनी
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अक्षर भेद की रमैनी
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कबीर गोरख की गोष्ठी
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कबीर की साखी
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कबीर परिचय की साखी
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कर्म कांड की रमैनी
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काया पंजी
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चौका पर की रमैनी
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चौतीसा कबीर का
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छप्पय कबीर का
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जन्म बोध
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तीसा जंत्र
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नाम महातम की साखी
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निर्भय ज्ञान
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पिय पहचानवे के अंग
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पुकार कबीर कृत
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बलख की फैज़
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वारामासी
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बीजक
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व्रन्हा निरूपण
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भक्ति के अंग
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भाषो षड चौंतीस
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मुहम्मद बोध
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मगल बोध
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रमैनी
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राम रक्षा
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राम सार
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रेखता
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विचार माला
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विवेक सागर
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शब्द अलह टुक
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शब्द राग काफी और राग फगुआ
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शब्द राग गौरी और राग भैरव
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शब्द वंशावली
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शब्दावली
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साधो को अंग
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सुरति सम्वाद
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स्वास गुज्झार
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हिंडोरा वा रेखता
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हस मुक्तावालो
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ज्ञान गुदड़ी
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ज्ञान चौतीसी
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ज्ञान सरोदय
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ज्ञान सागर
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ज्ञान सम्बोध
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ज्ञान स्तोश्र
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संत कबीर की बंदी छोर
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सननामा
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सत्संग कौ अग
कबीर दास के मसहूर दोहे
दोहा – 1
दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥
कबीर दास की मृत्यु
संत कबीर की मृत्यु सन 1518 ई. को मगहर में हुई थी. कबीर के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में बराबर थे. जब कबीर की मृत्यु हुई तब उनके अंतिम संस्कार पर भी विवाद हो गया था. उनके मुस्लिम अनुयायी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से हो जबकि हिन्दू, हिन्दू रीति रिवाजो से करना चाहते थे. इस कहानी के अनुसार इस विवाद के चलते उनके शव से चादर उड़ गयी और उनके शरीर के पास पड़े फूलों को हिन्दू मुस्लिम में आधा-आधा बाँट लिया. हिन्दू और मुसलमानों दोनों से अपने तरीकों से फूलों के रूप में अंतिम संस्कार किया. कबीर के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी बनाई गयी हैं.
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