ज़ाँ प्याज़े का जीवन परिचय | Jean Piaget Biography in Hindi

ज़ाँ प्याज़े ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया है। ज़ाँ प्याज़े के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है। ज़ाँ प्याज़े के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है।

ज़ाँ प्याज़े का प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा 

ज़ाँ प्याज़े का जन्म 9 अगस्त, 1896 को  स्विटजरलैण्ड में हुआ था। ज़ाँ प्याज़े एक मनोविज्ञानी चिकित्सा थे, जो बाल विकास पर किये गये अपने कार्यों के कारण प्रसिद्ध हैं। ज़ाँ प्याज़े विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती थे। इनके अनेक अवधारणाओं के लिए हम ज़ाँ प्याज़े के ऋणी हैं जिनमें आज भी टिके रहने की क्षमता और आकर्षण है, जैसे समायोजन/आत्मसातकरण, अनुकूलन वस्तु स्थायित्व, आत्मकेंन्द्रीकरण, संरक्षण, तथा परिकाल्पनिक-निगमित सोच। बच्चों के सक्रिय, रचनात्मक विचारक होने की वर्तमान दृष्टि के लिए भी हम, विलियम जेम्स तथा जॉन डुई के साथ-साथ, ज़ाँ प्याज़े के भी हमेसा ऋणी रहेगे।
        ज़ाँ प्याज़े का बच्चों के लिए निरीक्षण करने की विलक्षण प्रतिभा थी। उसके सावधानीपूर्वक किये गये प्रेक्षणों ने हमें यह खोजने के सूझबूझ भरे तरीके दिखाये कि बच्चे कैसे अपने संसार के साथ क्रिया करते हैं और तालमेल बिठाते हैं। ज़ाँ प्याज़े ने हमें संज्ञानात्मक विकास में कुछ खास चीजें खोजना सिखाया, जैसे पूर्वसंक्रियात्मक सोच से मूर्त संक्रियात्मक सोच में होने वाला बदलाव। उसने हमें यह भी दिखाया कि कैसे बच्चों को अपने अनुभवों की संगत अपनी योजनाओं, संज्ञानात्मक ढांचों और साथ ही साथ अपनी योजनाओं की संगत अपने अनुभवों से बिठाने की जरूरत होती है। ज़ाँ प्याज़े ने यह भी दिखलाया कि यदि परिवेश की संरचना ऐसी हो जिसमें एक स्तर से दूसरे स्तर तक धीरे-धीरे बढ़ने की सुविधा हो तो, संज्ञानात्मक विकास होने की संभावना रहती है।हम अब इस प्रचलित मान्यता के लिए भी उसके ऋणी हैं कि अवधारणाएं अचानक अपने पूरे स्वरूप में प्रकट नहीं हो जातीं, बल्कि वे ऐसी छोटी-छोटी आंशिक उपलब्धियों की श्रृंखला से होती हुई विकसित होती हैं जिनके परिणाम स्वरूप क्रमशः अधिक परिपूर्ण समझ पैदा होती है।
       ज़ाँ प्याज़े  के ऊपर विशेष रूप से प्रारंभिक और मध्य बचपन के दौरान शिक्षा पर बहुत ज्यादा प्रभाव था। उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा University of Neuchâtel (1918) और University of Zurich  से प्राप्त किया। ज़ाँ प्याज़े ने अलग अलग क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल किया है जैसे कंस्ट्रक्टिविज़्म , जेनेटिक  एपिस्टेमोलोग्य , थ्योरी  ऑफ़  कॉग्निटिव  डेवलपमेंट , ऑब्जेक्ट  परमेनेन्स , एगोसेंट्रिस्म इत्यादि।  उसकी मीमांसा (theory) से निकले तीन सिद्धांतों का आज भी शिक्षकों के प्रशिक्षण पर और कक्षा के भीतर अपनाये जाने वाले तौर तरीकों पर व्यापक असर होता है। ज़ाँ प्याज़े का क्षेत्र डेवलपमेंटल साइकोलॉजी, एपिस्टेमोलोग्य था। 

ज़ाँ प्याज़े का विवाह

ज़ाँ प्याज़े का विवाह valentine châtenay से सं 1923 हुआ था। उनके 3 बच्चे है लॉरेंट पागेट, जैकलिन पागेट, लुइनने 

ज़ाँ प्याज़े के अनुसार खोज पद्धति से सीखना 

ज़ाँ प्याज़े का अनुसरण करने वाली कक्षा में बच्चों को परिवेश के साथ स्वतः स्फूर्त/सहज रूप से क्रिया करते हुए चीजों को खुद से खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। पहले से तैयार ज्ञान को शाब्दिक रूप से प्रस्तुत करने के बजाय, शिक्षक ऐसी विविध गतिविधियों की सुविधा प्रदान करते हैं जो खोजने को बढ़ावा देती हैं- जैसे कला, पहेलियॉंँ, मेज वाले खेल, विभिन्न परिधान, चीजें बनाने वाले गुट्टे, किताबें, नापने के औजार, संगीत, वाद्य तथा और भी बहुत कुछ है।

बच्चों की सीखने की तत्परता के प्रति संवदेनशीलता 

ज़ाँ प्याज़े का मानना था कि बच्चों के सीखने के उपयुक्त अनुभव उनकी तात्कालिक सोच से ही विकसित होती हैं। शिक्षक बच्चों को ध्यानपूर्वक देखते हैं, उनकी बातें सुनते हैं, और उन्हें ऐसे अनुभव सुलभ शिक्षा कराते हैं, जिनमें वे नई खोजी गई योजनाओं का अभ्यास कर सकें और जो उनके संसार को देखने के गलत तरीकों को चुनौती दे सकें। लेकिन शिक्षक बच्चों पर कोई नये कौशल नहीं थोपते जब तक वे उनमें रूचि और उनके लिए तैयारी नहीं दिखाते, क्योंकि ऐसा करने से वे वयस्कों के सूत्रों को सतही ढंग से स्वीकार कर लेते हैं, पर उससे सच्ची समझ पैदा नहीं होती।

व्यक्तिगत भेदों को स्वीकार करना

ज़ाँ प्याज़े का मानना था कि सभी बच्चे विकास के समान अनुक्रम से गुजरते हैं, लेकिन उनकी गति/रफ्तार अलग-अलग होती है। इसलिए शिक्षकों को अलग-अलग विद्यार्थियों के लिए और छोटे-छोटे समूहों के लिए गतिविधियों की योजना बनाना चाहिए, ना कि एक साथ पूरी कक्षा के लिए। इसके अतिरिक्त शिक्षक शैक्षणिक प्रगति का मूल्यांकन करते समय हर बच्चे की तुलना उसी की पिछली स्थिति से करते हैं। उनकी रूचि इस बात में कम होती है कि बच्चे किन्हीं मानक स्तरों के सापेक्ष या कि समान उम्र के बच्चों के औसत प्रदर्शन के सापेक्ष कैसा प्रदर्शन करते हैं।

ज़ाँ प्याज़े का नैतिक विकास सिद्धान्त

ज़ाँ प्याज़े हमेसा बच्चों के विकास के बारे में सोचते थे। बच्चे नैतिक मुद्दों के बारे में किस तरह सोचते हैं; इसके बारे में ज़ाँ प्याज़े ने (1932) में अपनी रूचि जागृत की थी। उन्होंने बहुत अधिक गहराई से चार से बारह साल के उम्र के बच्चों का अवलोकन और साक्षात्कार किया। एक बार ज़ाँ प्याज़े ने बच्चों को कंचे खेलते हुए देखा। बच्चों को कंचे खेलते हुए देख उन्होंने बच्चो के प्रति खेल के नियम पर किस तरह से विचार किया यह जानने की इच्छा जाहिर किया और उन्होंने बच्चों से नैतिक मुद्दों पर (जैसे, सजा और न्याय) के बारे में भी बात की। ज़ाँ प्याज़े ने पाया कि जब बच्चे नैतिकता के बारे में सोचते हैं, तो वे दो अलग-अलग अवस्थाओं से होकर गुजरते है।
  • चार से सात साल के बच्चे नैतिकता दिखाते है जो कि ज़ाँ प्याज़े के नैतिक विकास के सिद्धान्तों की पहली अवस्था है। बच्चे न्याय और नियमों को दुनिया के ना बदलने वाले गुणधर्म मानते हैं। उनके लिए न्याय और नियम ऐसी चीजें हैं जो लोगों के बस से बाहर होती हैं।
  • सात से दस साल की उम्र में बच्चे नैतिक चिन्तन की पहली से दूसरी अवस्था के बीच एक मिली-जुली स्थिति में होते है।
  • दस साल या उससे बड़े बच्चे आटोनोमस (स्वतंत्रता पर आधारित) नैतिकता दिखाते है। वे यह बात जान जाते है कि नियम और कानून लोगों के बनाए हुए हैं। और किसी के कार्य का मूल्यांकन करने में वे कार्य को करने वाले व्यक्ति के इरादों और कार्य के परिणामों के ऊपर भी विचार करते हैं।

ज़ाँ प्याज़े का मानना है कि बाहरी सत्ता के आधर पर नैतिक चिन्तन करने वाले बच्चे यह भी मानते हैं कि नियम न बदलने वाली चीज है और यह नियम किसी शक्तिशाली सत्ता के द्वारा बनाए गए हैं। ज़ाँ प्याज़े ने छोटे बच्चों को सुझाया कि वह कंचे के खेल के नए नियम बनाएं, तो छोटे बच्चों ने मना कर दिया। दूसरी तरफ बड़े बच्चों ने परिवर्तन को स्वीकारा और पहचाना कि नियम सिर्फ हमारी सुविधा के लिए बनाए गए हैं, जिन्हें बदला जा सकता है। बाहरी सत्ता के आधार पर नैतिक चिन्तन करने वाले बच्चे ‘तुरन्त न्याय’ की धारणा में भी विश्वास रखते हैं। यानि कि अगर एक नियम तोड़ा जाता है तो सजा भी मिलनी चाहिए। छोटे बच्चे मानते हैं कि अगर किसी चीज को खंडित किया या तोड़ा गया है तब यह काम अपने आप सजा से जुड़ जाता है। इसीलिए छोटे बच्चे जब भी कोई गलत काम करते हैं तब चिन्ता से अपने आसपास देखने लगते हैं, यह सोचकर कि उन्हें सजा तो मिलेगी। तुरंत न्याय का सिद्धान्त यह भी कहता है कि अगर किसी के साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हुआ हो तो उस व्यक्ति ने जरूर पहले कुछ किया होगा, जिसके परिणास्वरूप ऐसा हुआ। बड़े बच्चे जो नैतिकता की स्वतन्त्रता रखने लगते है, यह पहचानते है कि सजा तभी मिलती है जब किसी ने कुछ गलत होते देख लिया हो और उसके बाद भी जरूरी नहीं कि सजा मिले ही।

नैतिक तर्क को लेकर इस तरह के परिवर्तन कैसे आते हैं? ज़ाँ प्याज़े का मानना है कि बाहरी सत्ता के आधर पर नैतिक चिन्तन करने वाले बच्चे यह भी मानते हैं कि नियम न बदलने वाली चीज है और यह नियम किसी शक्तिशाली सत्ता के द्वारा बनाए गए हैं। ज़ाँ प्याज़े ने छोटे बच्चों को सुझाया कि वह कंचे के खेल के नए नियम बनाएं, तो छोटे बच्चों ने मना कर दिया। दूसरी तरफ बड़े बच्चों ने परिवर्तन को स्वीकारा और पहचाना कि नियम सिर्फ हमारी सुविधा के लिए बनाए गए हैं, जिन्हें बदला जा सकता है। मानते हैं कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते है उनकी सोच सामाजिक मुद्दों के बारे में गहरी होती चली जाती है। ज़ाँ प्याज़े का मानना है कि सामाजिक समझ साथियों के साथ आपसी लेन-देन से आती है। जिन साथियों के पास एक जैसी शक्ति और ओहदा होता है वहां योजनाओं के बीच समझौता किया जाता है और सहमत न होने पर तर्क दिया जाता है और आखिर में सब कुछ ठीक हो जाता है। अभिभावक और बच्चे के रिश्तों में जहां अभिभावक के पास शक्ति होती है लेकिन बच्चों के पास नहीं, वहां नैतिक तर्क की समझ को विकसित करने की संभावना कम रहती है क्योंकि अधिकतर नियम आदेशात्मक तरीके से दिए जाते हैं।

आलोचनाएँ

ज़ाँ प्याज़े का सिद्धान्त चुनौतियों से मुक्त नहीं रह पाया।
  • विभिन्न विकास स्तरों पर बच्चों की क्षमताओं के अनुमान,
  • अवस्थाएं,
  • उच्च स्तरों पर तर्क करने के लिए बच्चों का प्रशिक्षण,
  • संस्कृति एवं शिक्षा।

ज़ाँ प्याज़े की मृत्यु

ज़ाँ प्याज़े की मृत्यु 16 सितम्बर 1980 को 84 वर्ष की उम्र में जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड हुआ था। वह एक महान व्यक्ति थे।  उनकी चर्चा आज भी पुरे देश में की जाती है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में बहुत ज्यादा महरात हासिल किया है। उनके बारे में जितना कहा जाये उतना कम होगा। 

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