चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Biography of ChandraShekhar Aazad in Hindi

चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। उन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय क्रन्तिकारी थे।
         
         उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भागलेने के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के सलाहकार, और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और भगत सिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।

चंद्रशेखर आज़ाद का प्रारंभिक जीवन 

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव जो अब (चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) बैसवारा से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् 1856 में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। 
 चंद्रशेखर कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे।  इनके पिता नेक, धर्मनिष्ट और दीं-ईमान के पक्के थे और उनमें पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था। वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवर्ति के थे।  घोर गरीबी में उन्होंने दिन बिताए थे और इसी कारण चंद्रशेखर की अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग  मनोहरलाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे।
        बचपन से ही चंद्रशेखर में भारतमाता को स्वतंत्र कराने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी।  इसी कारन उन्होनें स्वयं अपना नाम आज़ाद रख लिया था। उनके जीवन की एक घटना ने उन्हें सदा के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर कर दिया।  13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ अमृतसर में जनरल डायर ने जो नरसंहार किया, उसके विरोध में तथा रौलट एक्ट के विरुद्ध जो जन-आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, वह दिन प्रतिदिन ज़ोर पकड़ता जा रहा था।
        आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये।
        प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।

 चंद्रशेखर आजाद की पहली घटना

1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद उस समय पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलनका फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर आज़ाद भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है-

चन्द्रशेखर आज़ाद की झांसी में क्रांतिकारी गतिविधियां

चंद्रशेखर आजाद ने कुछ समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। हालाकी निशाने बाजी उन्होंने बचपन में ही सीख लिया था। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर आजाद ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।

चन्द्रशेखर आज़ाद का क्रन्तिकारी जीवन 

चंद्रशेखर आज़ाद 1919 में अमृसतर में हुए जलियां वाला बाग हत्याकांड से बहुत आहत और परेशान हुए। सन 1921 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब चंद्रशेखर आज़ाद ने इस क्रांतिकारी गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें पंद्रह साल की उम्र में ही पहली सजा मिली। चन्द्रशेखर आज़ाद को क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए पकड़ा गया। जब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आज़ाद बताया। चंद्रशेखर आज़ाद को पंद्रह कोड़ों की सजा सुनाई गई। चाबुक के हर एक प्रहार परयुवा चंद्रशेखर "भारत माता की जय" चिल्लाते थे। तब से चंद्रशेखर को आज़ाद की उपाधि प्राप्त हुई और वह आज़ाद के नाम से विख्यात हो गए। स्वतंत्रता आन्दोलन में कार्यरत चंद्रशेखर आज़ाद ने कसम खाई थी कि वह ब्रिटिश सरकार के हांथों कभी भी गिरफ्तार नहीं होंगे और आज़ादी की मौत मरेंगे ।
         असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी कीमत पर देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आज़ाद काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने के प्रयास (1926), और लाहौर में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स को गोली मारने (1928) जैसी घटनाओं में शामिल थे।  चंद्रशेखर आज़ाद ने भगत सिंह और दूसरे देशभक्तों जैसे सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा’ का गठन किया। इसका उद्देश्य भारत की आज़ादी के साथ भारत के भविष्य की प्रगति के लिए समाजवादी सिद्धांतों को लागू करना था।

चन्द्रशेखर आज़ाद द्वारा लाला लाजपतराय का बदला

17 दिसम्बर, 1928 को चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने संध्या के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ़्तर को जा घेरा। ज्यों ही जे. पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकला, पहली गोली राजगुरु ने दाग़ दी, जो साडंर्स के मस्तक पर लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर पड़ा। भगतसिंह ने आगे बढ़कर चार–छह गोलियाँ और दागकर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने पीछा किया तो चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। लाहौर नगर में जगह–जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस क़दम को सराहा गया।

केन्द्रीय असेंबली में बम
चन्द्रशेखर आज़ाद के ही सफल नेतृत्व में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। यह विस्फोट किसी को भी नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। विस्फोट अंग्रेज़ सरकार द्वारा बनाए गए काले क़ानूनों के विरोध में किया गया था। इस काण्ड के फलस्वरूप भी क्रान्तिकारी बहुत जनप्रिय हो गए। केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट करने के पश्चात भगति सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वयं को गिरफ्तार करा लिया। वे न्यायालय को अपना प्रचार–मंच बनाना चाहते थे।

चंद्रशेखर आज़ाद की मृत्यु

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु अल्लाहाबाद ( प्रयागराज ) के अल्फ्रेड पार्क ( कंपनी बाग़ पार्क ) में 27 फरवरी 1931 को हुई थी। जानकारों से जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद और उनके सहकर्मियों की चारो तरफ से घेर लिया था। खुद का बचाव करते हुए वे काफी घायल हो गए थे और उन्होंने कई पुलिसकर्मीयो को मारा भी था। चंद्रशेखर आजाद बड़ी बहादुरी से ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और इसी वजह से सुखदेव राज भी वहा से भागने में सफल हुए। लंबे समय तक चलने वाली गोलीबारी के बाद, अंततः चंद्रशेखर आजाद चाहते थे की वे ब्रिटिशो के हाथ ना लगे, और जब पिस्तौल में आखिरी गोली बची हुई थी तब उन्होंने वह आखिरी गोली खुद को ही मार दी थी। चंद्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल हमें आज भी अल्लाहबाद ( प्रयागराज ) म्यूजियम में देखने मिलती है।

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