यशवंत सिन्हा की जीवनी | Yashwant Sinha Biography in Hindi

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राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 18 जुलाई को होना है और 21 जुलाई को मतगणना होना हैं। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख जून 29 तक है। यशवंत सिन्हा, झारखंड की पूर्व राज्यपाल और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू, के खिलाफ आगामी चुनाव के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार है। तो चलिए जानते हैं कौन है यशवंत सिन्हा ? जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़े:

Yashwant Sinha एक भारतीय Politician और BJP के एक सीनियर नेता है आईएस  से Politician बने यशवंत सिन्हा को लोग भारतीय अर्थव्यवस्था  को बदलने वाला नेता समझते हैं उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन काल में एक चरित्रवान और सज्जन व्यक्ति के रूप में जाने गए हैं जिन्होंने कभी भी घटिया राजनीति नहीं की है अपने नौकरशाही जीवन को वितरित करने के बाद यशवंत सिन्हा ने बीजेपी  के टिकट के रूप में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया था. 

इसके अलावा वह Atal Bihari Vajpayee की सरकार में Finance minister भी रहे हैं इन्होंने कई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में और सामाजिक और राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. जब Yashwant Sinha विदेश मंत्री थे तो उन्होंने भारत और फ्रांस के संबंधों को अच्छा बनाया जिसके फलस्वरूप उनको 2015 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक Legion of Honor के awards  प्रदान किया गया. 13 मार्च 2021 यशवंत सिन्हा ने भारतीय जनता पार्टी कोलकाता में TMC  मैं शामिल हुए क्योंकि वह बीजेपी के केंद्रीय सरकार से नाराज चल रहे थे इसलिए उन्होंने वर्ष 2018 में भी भाजपा के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने की घोषणा की थी.

Yashwant Sinha Biography

यशवंत सिंहा की जीवनी -Yashwant Sinha Biography in Hindi

यशवंत सिन्हा का जन्म १५ जनवरी १९३७ को भीहर के राजधानी पटना में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके

पिता का नाम ‘बिपिन बिहारी सरन’ तथा उनकी माता का नाम ‘धना देवी’ थी।   यशवंत सिन्हा की प्रारम्भिक शिक्षा पटना में हुई ईयर १९५८ में यशवंत जी ने राजनीती शास्त्र में स्नाकोतर की पड़े पूरी की।  स्नाकोतर करने के पश्चात सन १९६० तक आप ने पटना विश्वविद्यायल में राजनीती शास्त्र का अधयापन किया सन १९६० में यशवंत सिन्हा का चयन आईएएस (भारतीय प्रशानिक सेवा) में होगया

यशवंत सिन्हा ब्यूरोक्रेटिक करियर ( Yashwant Sinha Bureaucratic Career )

यशवंत सिन्हा सन 1960 में ही ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ में शामिल हुए और अगले 24 वर्षों के शासनकाल में कई अहम पदों पर अपनी सेवाएं दी। उन्होंनेन्हों 4 साल तक उप-प्रभागीय न्यायाधीश और न्यायाधीश के रूप में सेवा की। उन्होंनेन्हों 2 साल तक बिहार सरकार के वित्त मंत्रालय में सचिव और उप सचिव के तौर पर काम किया और उसके बाद उन्होंनेन्हों भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में उप सचिव के रूप में कार्य किया। यशवंत सिन्हा ने सन 1971 से 1973 के बीच बॉन, जर्मनी के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव के तौर पर काम किया। इसके बाद उन्होंनेन्हों सन 1973 से 1974 तक फ्रेंकफ़र्ट में भारत के कौंसुकौं सुल जनरल के पद पर काम किया। इस क्षेत्र में लगभग 7 वर्ष तक कार्य करने के बाद उन्हें विदेश व्यापार और भारत के यूरोपीय आर्थिक संघ से रिश्तों के विषय में बहुत निपुणता प्राप्त हो गयी। इसके बाद यशवंत सिन्हा ने बिहार सरकार के औद्योगिक अवसंरचना विभाग और भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय में भी पदभार संभाला, जहाँ पर उन्होंनेन्हों विदेशी व्यावसायिक सहयोग, तकनीक आयात और औद्योगिक समझौते से सम्बंधित कई कार्य किए। उन्होंनेन्हों 1980-84 के बीच भारत सरकार के ‘भूतल परिवहन मंत्रालय’ में संयुक्त सचिव का पद संभाला और बंदरगाह, पोत परिवहन और सड़क परिवहन के सम्बंधित मामलों पर काम किया। 1970 के दशक में ‘जय प्रकाश नारायण’ के समाजवादी आन्दोलन से यशवंत सिन्हा काफी प्रभावित हुए थे

यद्यपि उन्होंने सक्रिय राजनीति में शामिल होने के विचार के साथ खिलवाड़ किया, वित्तीय स्थिरता और नौकरशाही विवेक ने उन्हें अगले 10 वर्षों तक सेवा में जारी रखा है।

Yashwant Sinha राजनीति करियर

1984 भारत में राजनीतिक उथल पुथल का वर्ष था। इसलिए यशवंत सिन्हा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हजारीबाग से लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। परिणामों के अनुसार, यह एक अच्छी शुरुआत नहीं थी, वह केवल 10527 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे, जिसके बाद वे वर्ष 1986 में अखिल भारतीय महासचिव और वर्ष 1988 में राज्यसभा के सदस्य चुने गए। 1998 में, भाजपा के स्टार प्रचारक रहे।

चुनावी सभा के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांगते हुए कहा कि यशवंत सिन्हा को ज्यादा से ज्यादा वोट देकर अगर हमारी सरकार बनती है तो हम यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनाएंगे. इसने प्रभाव डाला और यश चाहते हैं कि सिन्हा 3,23,283 वोटों के साथ पहले नंबर पर रहे। 1998 में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार का वित्त मंत्री बनाया गया। वह 1998-2002 तक वित्त मंत्री और 2004 तक विदेश मंत्री रहे, हालांकि यशवंत सिन्हा को 2004 के चुनाव में हजारीबाग सीट से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2009 के चुनाव में यशवंत सिन्हा जीते लेकिन बीजेपी सरकार हार गई।

उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, इस पद पर वे दो साल तक रहे। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सिन्हा को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दरकिनार कर दिया। 2012 में, विद्रोह के एक भाव में, सिन्हा ने देश के राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया। उन्होंने 2013 में खुद को भाजपा की कोर टीम से बाहर कर दिया, हालांकि वे भाजपा की 80 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने रहे। सिन्हा ने 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का विकल्प चुना, बल्कि अपने बेटे जयंत सिन्हा के लिए रास्ता बनाया, जो झारखंड में अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे। 2018 में, वरिष्ठ सिन्हा ने भाजपा छोड़ दी, यह दावा करते हुए कि पार्टी का नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, लोकतंत्र के लिए खतरा थे।

राजनीति करियर

1984 का साल भारत मैं राजनीतिक उथल-पुथल वाला था।इसलिए Yashwant Sinha ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।1984 में लोकसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव में हजारीबाग से चुनाव लड़ने का मौका मिला। नतीजों के हिसाब से अच्छी शुरुआत नहीं थी वह महज 10527 Vote लेकर तीसरे स्थान पर रहे इसके बाद साल 1986 में All India General Secretary और साल 1988 में Rajya Sabha का Member चुना गया।साल 1998 में बीजेपी के स्टार प्रचारक Lal Krishna Advani हजारीबाग में चुनावी सभा करने आए हुए थे।

चुनावी सभा के दौरान Lal Krishna Advani ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांगते हुए कहा की आप Yashwant Sinha को ज्यादा से ज्यादा वोट देकर जातिये अगर हमारी अगर सरकार बनती है तो हम Yashwant Sinha को वित्त मंत्री बना देंगे।आडवाणी के भाषण का असर पड़ा और Yash want Sinha 3,23,283 वोटों लेकर पहले नंबर पर रहे।1998 में Atal Bihari Vajpayee की नेतृत्व वाली सरकार के वित्त मंत्री बनाये गए। उन्होंने 1998-2002 तक वित्त मंत्री और 2004 तक विदेश मंत्री रहे हालांकि 2004 के चुनाव मे हजारीबाग Seat से Yashwant Sinha को हार का सामना करना पड़ा।इसके बाद 2009 के चुनाव मे यशवंत सिन्हा जित गये पर बीजेपी सरकार हार गयी। 

उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, एक पद जो उन्होंने दो साल के लिए रखा था। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सिन्हा को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दरकिनार कर दिया। 2012 में, विद्रोह के संकेत में, सिन्हा ने देश के राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया। उन्होंने 2013 में खुद को भाजपा की कोर टीम से बाहर रखा, हालांकि वह भाजपा की 80-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य बने रहे। सिन्हा ने अपने बेटे जयंत सिन्हा, जो झारखंड में अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे, के लिए रास्ता बनाने के बजाय 2014 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का विकल्प चुना। 2018 में, वरिष्ठ सिन्हा ने भाजपा छोड़ दी, यह दावा करते हुए कि पार्टी का नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकतंत्र को धमकी दे रहे थे।

यशवंत सिन्हा के जीवन के महत्वपूर्ण साल ( Yashwant Sinha Life Important Year’s )

  • यशवंत सिन्हा का जन्म सन 1937 में पटना बिहार में हुआ था।
  • 1958 में ‘पटना विश्व विद्यालय’ से राजनीति विज्ञान में स्नातकोतर की उपाधि ली।
  • 1960 में प्रतिष्ठित ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ में शामिल हुए।
  • 1971-73 में भारतीय दूतावास, बॉन, जर्मनी में सबसे पहले सचिव बने।
  • 1973-74 में फ्रंक्फर्ट में भारतीय महावाणिज्यदूत के पद पर काम किया।
  • 1980-84 में ‘भूतल परिवहन मंत्रालय’ में संयुक्त सचिव का पद संभाला।
  • 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र दे दिया और सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।
  • 1986 में ‘जनता पार्टी’ के अखिल भारतीय महासचिव बनाये गए।
  • 1988 में राज्यसभा में नियुक्त किए गए। सन 1989 में जनता दल के अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किए गए। सन 1990-1991 में ‘चंद्रशेखर सरकार’ में वित्त मंत्री बने।
  • 1996 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्री य प्रवक्ता बने। सन 1998-02 में ‘अटल बिहारी वाजपयी’ सरकार में वित्त मंत्री रहे।
  • 2004 में ‘अटल बिहारी वाजपयी सरकार’ में विदेश मंत्री बनाये गए।
  • 2004 में हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हारे।
  • 2009 में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
  • 2019 भारतीय जनता पार्टी के से त्यागपत्र दे दिया
  • 3 मार्च 2021 को श्री सिन्हा ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर पुनः सक्रिय राजनीति में वापसी किया।
  • टीएमसी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया

यशवंत सिन्हा की नरेंद्र मोदी से क्यों नहीं बनी?

यशवंत सिन्हा ने 2009 का चुनाव जीता, लेकिन 2014 में उन्हें बीजेपी का टिकट नहीं दिया गया. धीरे धीरे नरेंद्र मोदी से उनकी दूरी बढ़ने लगी और अंतत: 2018 में 21 वर्ष तक बीजेपी में रहने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया.

यशवंत सिन्हा बताते हैं, ‘हाँलाकि मैंने इस बात की हिमायत की थी कि मोदीजी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाए लेकिन 2014 का चुनाव आते आते मुझे इस बात का आभास हो गया था कि इनके साथ चलना मुश्किल होगा. इसलिए मैंने तय किया कि मैं चुनाव लड़ूंगा ही नहीं.

पार्टी ने मेरी जगह मेरे बेटे को उस सीट का ऑफ़र दिया. वो जीते और मोदीजी ने उन्हें मंत्री भी बनाया. हाँलाकि अब वो मंत्री नहीं हैं 2019 का चुनाव जीतने के बाद भी. इसके बाद भी मैं मोदीजी को सुझाव देता रहा.

अलग अलग मुद्दों पर उन्हें पत्र लिखता रहा. हमारा उनका फ़ासला बढ़ा कश्मीर के मुद्दे को ले कर. मैं चाहता था कि काश्मीर में वाजपेई जी की नीतियों का अनुसरण हो. उनकी नीति थी इंसानियत, जमहूरियत और कश्मीरियत.

‘मेरा मानता था कि कश्मीर में सभी संबंधित पक्षों से बातचीत की जाए. वाजपेई जी के समय में हुर्रियत तक से बातचीत हुई थी.’

Yashwant Sinha ने क्यूँ छोड़ी बीजेपी 

यशवंत सिन्हा 2014 के बाद से ही बीजेपी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। अक्सर वह पार्टी नेतृत्व और केंद्र सरकार के फैसलों पर सवाल उठाते रहते थे। इसके बाद 2018 में उन्होंने BJP छोड़ दी थी। तब से ही उनके किसी पार्टी में शामिल होने के उत्सुकता लगाए जा रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। अब पश्चिम बंगाल चुनाव से ठीक पहले उन्होंने TMC जॉइन की है। पश्चिम बंगाल के चुनाव से TMC में शामिल होने के बाद उनको पार्टी का Vice President बना दिया है। Yashwant Sinha  को अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी नेताओं में शुमार किया जाता था। एक नौकरशाही से राजनेता बने Yashwant Sinha तीन दशकों तक बीजेपी में रहे थे।

Yashwant Sinha के विवाद 

• नवंबर 2013 में, पप्पू यादव ने अपनी आत्मकथा- द्रोहकाल का पथिक में आरोप लगाया कि उनकी भारतीय संघीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3 सांसदों को 2001 में एनडीए में शामिल होने के लिए सिन्हा (तत्कालीन वित्त मंत्री) से पैसा मिला।

• सिन्हा को यूटीआई घोटाले में उनकी कथित भागीदारी के लिए भी आलोचना की गई थी।

• 4 अप्रैल 2017 को, उन्हें हजारीबाग पुलिस ने पुलिस पर पथराव करने के लिए गिरफ्तार किया था। सिंगा एक धार्मिक जुलूस पकड़ रहे थे, और जब पुलिस ने उन्हें रोका, तो सिन्हा और उनके समर्थकों ने उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया।

• 27 सितंबर 2017 को, उन्होंने फिर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ बयान देकर विवाद को आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, “मैं अपने राष्ट्रीय कर्तव्य में विफल हो जाऊंगा, अगर मैं अब भी वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी के खिलाफ नहीं बोला।”

• सिन्हा को हजारीबाग से चुनाव लड़ने के लिए अपने बेटे जयंत सिन्हा को उत्तराधिकारी के रूप में नामित करके भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के लिए भी आलोचना की गई है।

यशवंत सिन्हा की उपलब्धियां ( Yashwant Sinha Achievement )

2015 में उन्हें फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक विशिष्ट अधिकारी डेला लेजियन डी होनूर से सम्मानित किया गया था।

यशवंत सिन्हा का जन्म कब और कहा हुआ था ?

यशवंत सिन्हा का जन्म १५ जनवरी १९३७ को भीहर के राजधानी पटना में एक कायस्थ परिवार में हुआ था

यशवंत सिन्हा के माता पिता का क्या नाम है

यशवंत सिन्हा के पिता का नाम ‘बिपिन बिहारी सरन’ तथा उनकी माता का नाम ‘धना देवी’ थी

यशवंत सिन्हा BJP प्रवक्ता कब बने

1996 भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने।

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